23जून रथयात्रा स्थगित वाराणसी,

*23 जून से लगने वाला तीन दिवसीय रथयात्रा मेला स्थगित*


वाराणसी : कोरोना संक्रमण के चलते काशी के लक्खा मेले में शुमार रथयात्रा मेले का आयोजन इस वर्ष नहीं होगा। पुरीपुराधिपति भी शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करेंगे। 23 से 25 जून तक रथयात्रा चौराहे लगने वाला मेला स्थगित किया गया है। जिसके चलते भगवान जगन्नाथ, भइया बलभद्र और बहन सुभद्रा संग सोमवार को नगर भ्रमण पर नहीं निकले। ऐसे में काशी का लक्खा मेला भी नहीं सजेगा।


ट्रस्ट श्रीजगन्नाथ जी के सचिव आलोक शापुरी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के तहत प्रदेश सरकार के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष यह निर्णय लिया गया है। रथयात्रा मेला से ही काशी में पर्व-उत्सवों का आरंभ माना जाता है। काशी में रथयात्रा मेले का इतिहास शताब्दियों पुराना है। मेला कब और कैसे शुरू हुआ इसे लेकर अलग-अलग लोक मान्यताएं भी हैं। करीब 317 वर्ष पहले जगन्नाथपुरी पुरी मंदिर से आए पुजारी ने ही अस्सी घाट पर जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की थी।


1690 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पुजारी बालक दास ब्रह्मचारी वहां के तत्कालीन राजा इंद्रद्युम्न के व्यवहार से नाराज होकर काशी आ गए थे। बाबा बालक दास भगवान को लगे भोग का ही प्रसाद ग्रहण करते थे। एक बार भादों में गंगा में बाढ़ आने की वजह से पुरी से प्रसाद पहुंचाने में पखवारे भर से अधिक का विलंब हो गया। इतने दिन पुजारी भूखे ही भगवान का ध्यान करते रहे। तब भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में उनको प्रेरणा दी कि वह काशी में ही मंदिर की स्थापना कर भोग लगाना शुरू करें। वर्ष 1700 से उन्होंने काशी में रथयात्रा मेला शुरू कराया। इसके अलावा इस मेले के बारे में एक और प्रसंग मिलता है। कहा जाता है कि वर्ष 1790 में पुरी मंदिर से काशी आए स्वामी तेजोनिधि ने गंगा तट पर रहकर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था।23 जून से लगने वाला तीन दिवसीय रथयात्रा मेला स्थगित


वाराणसी : कोरोना संक्रमण के चलते काशी के लक्खा मेले में शुमार रथयात्रा मेले का आयोजन इस वर्ष नहीं होगा। पुरीपुराधिपति भी शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करेंगे। 23 से 25 जून तक रथयात्रा चौराहे लगने वाला मेला स्थगित किया गया है। जिसके चलते भगवान जगन्नाथ, भइया बलभद्र और बहन सुभद्रा संग सोमवार को नगर भ्रमण पर नहीं निकले। ऐसे में काशी का लक्खा मेला भी नहीं सजेगा।


ट्रस्ट श्रीजगन्नाथ जी के सचिव आलोक शापुरी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के तहत प्रदेश सरकार के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष यह निर्णय लिया गया है। रथयात्रा मेला से ही काशी में पर्व-उत्सवों का आरंभ माना जाता है। काशी में रथयात्रा मेले का इतिहास शताब्दियों पुराना है। मेला कब और कैसे शुरू हुआ इसे लेकर अलग-अलग लोक मान्यताएं भी हैं। करीब 317 वर्ष पहले जगन्नाथपुरी पुरी मंदिर से आए पुजारी ने ही अस्सी घाट पर जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की थी।


1690 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पुजारी बालक दास ब्रह्मचारी वहां के तत्कालीन राजा इंद्रद्युम्न के व्यवहार से नाराज होकर काशी आ गए थे। बाबा बालक दास भगवान को लगे भोग का ही प्रसाद ग्रहण करते थे। एक बार भादों में गंगा में बाढ़ आने की वजह से पुरी से प्रसाद पहुंचाने में पखवारे भर से अधिक का विलंब हो गया। इतने दिन पुजारी भूखे ही भगवान का ध्यान करते रहे। तब भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में उनको प्रेरणा दी कि वह काशी में ही मंदिर की स्थापना कर भोग लगाना शुरू करें। वर्ष 1700 से उन्होंने काशी में रथयात्रा मेला शुरू कराया। इसके अलावा इस मेले के बारे में एक और प्रसंग मिलता है। कहा जाता है कि वर्ष 1790 में पुरी मंदिर से काशी आए स्वामी तेजोनिधि ने गंगा तट पर रहकर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था।23 जून से लगने वाला तीन दिवसीय रथयात्रा मेला स्थगित


वाराणसी : कोरोना संक्रमण के चलते काशी के लक्खा मेले में शुमार रथयात्रा मेले का आयोजन इस वर्ष नहीं होगा। पुरीपुराधिपति भी शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करेंगे। 23 से 25 जून तक रथयात्रा चौराहे लगने वाला मेला स्थगित किया गया है। जिसके चलते भगवान जगन्नाथ, भइया बलभद्र और बहन सुभद्रा संग सोमवार को नगर भ्रमण पर नहीं निकले। ऐसे में काशी का लक्खा मेला भी नहीं सजेगा।


ट्रस्ट श्रीजगन्नाथ जी के सचिव आलोक शापुरी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के तहत प्रदेश सरकार के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष यह निर्णय लिया गया है। रथयात्रा मेला से ही काशी में पर्व-उत्सवों का आरंभ माना जाता है। काशी में रथयात्रा मेले का इतिहास शताब्दियों पुराना है। मेला कब और कैसे शुरू हुआ इसे लेकर अलग-अलग लोक मान्यताएं भी हैं। करीब 317 वर्ष पहले जगन्नाथपुरी पुरी मंदिर से आए पुजारी ने ही अस्सी घाट पर जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की थी।


1690 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पुजारी बालक दास ब्रह्मचारी वहां के तत्कालीन राजा इंद्रद्युम्न के व्यवहार से नाराज होकर काशी आ गए थे। बाबा बालक दास भगवान को लगे भोग का ही प्रसाद ग्रहण करते थे। एक बार भादों में गंगा में बाढ़ आने की वजह से पुरी से प्रसाद पहुंचाने में पखवारे भर से अधिक का विलंब हो गया। इतने दिन पुजारी भूखे ही भगवान का ध्यान करते रहे। तब भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में उनको प्रेरणा दी कि वह काशी में ही मंदिर की स्थापना कर भोग लगाना शुरू करें। वर्ष 1700 से उन्होंने काशी में रथयात्रा मेला शुरू कराया। इसके अलावा इस मेले के बारे में एक और प्रसंग मिलता है। कहा जाता है कि वर्ष 1790 में पुरी मंदिर से काशी आए स्वामी तेजोनिधि ने गंगा तट पर रहकर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था।


                        चन्द्रशेखर सिंह


                           सा, सम्पदाक


                        9935402252


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