बात करते हैं अजर अमर श्री प्रभु हनुमानजी मंदिर अलीगंज लखनऊ

भारत में दसवां स्थान 
अलीगंज का हनुमान मंदिर, लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
 हनुमानजी एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनके कारण तीनों लोकों की कोई भी शक्ति अपनी मनमानी नहीं कर सकती। वे साधु-संतों के अलावा भगवानों के भी रक्षक हैं। उनसे बड़ा इस ब्रह्मांड में दूसरा कोई नहीं। वे परम ब्रह्मचारी और ईश्वरतुल्य हैं।
हनुमानजी के चमत्कारिक सिद्धपीठों की संख्‍या सैकड़ों में है। उन सभी स्थानों पर हनुमान के मंदिर बने हैं, जहां वे गए थे या जहां वे बहुत काल तक रहे थे या जहां उनका जन्म हुआ। कुछ मंदिर उनके जीवन की खास घटनाओं से जुड़े हैं और कुछ का संबंध चमत्कार से है। इन हजारों सिद्धपीठों या मंदिरों में से यहां प्रस्तुत है 36 चमत्कारिक और ऐतिहासिक मंदिरों के बारे में संक्षिप्त जानकारी
लखनऊ को किसी समय लक्ष्मणपुर कहा जाता था। लखनऊ के अलीगंज में है एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर, जो बेहद ही चमत्कारिक मंदिर है। आसपास या दूरदराज में जहां भी हनुमान मंदिर बनाया जा रहा है उसके लिए यहीं से सिंदूर और लंगोट ले जाकर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। 
 
अंग्रेज काल में लखनऊ के नवाब मुहम्मद अली शाह रहते थे। उनकी बेगम राबिया को कोई औलाद नहीं हो रही थी। सब दवा-दुआ बेकार जा रहा थी। किसी के बताने के बाद बेगम ने यहीं पर दुआ की 
और उनकी दु कबूल भी हुआ
अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर की स्थापना को लेकर अनेक मत हैं, एक मत के अनुसार अवध के छठें नवाब सआदत अली खां की मां छतर कुंअर ने मंदिर का निर्माण कराया था। अवध के नवाब शुजाउद्दौला की यह बेगम हिंदू थीं और चूंकि सआदत अली खां मंगलवार को पैदा हुए थे। इसलिए प्यार से उन्हें मंगलू भी कहा जाता था। मंगलवार हनुमान जी का दिन होता है, इसलिए हिंदू के साथ-साथ नवाब की आस्था भी इस दिन से जुड़ी रही है। छतर कुंअर को बेगम आलिया भी कहते थे। उनकी आस्था की बदौलत मंदिर का निर्माण हुआ । पौराणिक कथा के अनुसार हीवेट पॉलीटेक्निक के पास एक बाग होता था जिसे हनुमान बाड़ी कहते थे, क्योकि रामायण काल में जब लक्ष्मण और हनुमान जी सीता माता को वन में छोड़ने के लिए बिठूर ले जा रहे थे तो रात होने पर वह इसी स्थान पर रुक गए थे। उस दौरान हनुमान जी ने मां सीता माता की सुरक्षा की थी। बाद में इस्लामिक काल में इसका नाम बदल कर इस्लाम बाड़ी कर दिया गया था। कहा जाता है कि एक बार बेगम के सपने में बजरंग बली आए थे व सपने में इस बाग में अपनी मूर्ति होने की बात कही थी। अत: बेगम ने लावलस्कर के साथ जब जमीन को खोदवाया तो वहां पर प्रतिमा गड़ी पाई गई । इस प्रतिमा को उन्होंने पूरी श्रद्धा के साथ एक सिंहासन पर रखकर हाथी पर रखवाया ताकि बड़े इमामबाड़े के पास मंदिर बनाकर प्रतिमा की स्थापना की जा सके। किंतु  हाथी जब वर्तमान अलीगंज के मंदिर के पास पहुंचा तो महावत को कोशिश के बावजूद आगे बढ़ने के बजाय वहीं बैठ गया। इस घटना को भगवान का अलौकिक संदेश समझा गया। मूर्ति की स्थापना इसी स्थान पर होगी चाहिए। अत: मंदिर का निर्माण इसी स्थान पर सरकारी खजाने से कर दिया गया। यही अलीगंज का पुराना हनुमान मंदिर है।  मंदिर के शिखर पर पर चांद का चिह्न आज भी देखा जा सकता है.       
                     रत्नकृति तिवारी
                        रिपोर्टर 

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