सामाजिक कार्य पत्रकार रत्ना शुक्ला की ख़ास पेशकश लखनऊ से,

मैं सोचती हू (रत्न आकृति)
आप कैसे तय करते हैं? की किसी भिखारी को भीख दिया जाए या नहीं
उसकी परिस्थितियाँ देखकर।
या उसे देख कर
मैं इंसान को एक ही बार में देखकर पहचान जाती हूँ वो कैसा हैं। और कई बार मेरा अनुमान सही रहा हैं।

मेरे बुआ जब हॉस्पिटल में भर्ती थे, उसी दिन मुझे हॉस्पिटल से घर जाना था कुछ जरूरी रिपोर्ट्स लेने। आते समय मुझे एक भिखारी मिला मुझसे कई मिन्नतेंं कर रहा था। इस ग़रीब की मदद कर दो। उसने एक चीज़ ऐसी बोली जिससे मैं अपने आप को रोक नहीं पाई उसे पैसे देने के लिए। उसने कहा आप आज जो मनोकामना भगवान से माँगोगे वो पूरी होगी। मैंने भगवान से यहीं बोला आप मेरे बुआ को ठीक कर दीजिए बस।

हॉस्पिटल पंहुचते ही कुछ घंटे बाद मेरे बुआ गुज़र गए, उससे पहले एक रिपोर्ट आनी थीं। बुआजी का चेहरा देख बड़ी घबराहट हुई। वहीं दूसरी और डॉक्टर मुझसे मिलना चाहती थीं। उन्होंने बोला आपके बुआ  को हार्टअटैक हैं। कुछ समय के बाद वो गुज़र गए। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो मेरा इंतज़ार कर रही थी बस। उसी दिन के बाद से मैंने भीख देना बंद कर दिया

अगर उन्हें भूख लगी हैं तो मैं उन्हें खाना खिला देती हूँ चाहें वो 200 रुपये का ही क्यूँ न हो। एक महिला को प्यास लगी थीं और मुझे बोल रहीं थीं मुझे कुछ पैसे दे दो। पैसे देने के बजाय मैंने उन्हें जूस पिला दिया।

पैसे देने के बजाय आप उसकी मदद कर दीजिए। चाहें वो दवाईयों के लिए हो या खाने के लिए। पर पैसे कभी भी न देंं।
                                 रत्नाकृति 
                       पत्रकार रत्ना शुक्ला की रिपोर्ट
                       लखनऊ

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