साधारण से आसाधारण तक का पूरा जीवन,

:: साधारण से असाधारण :: 
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        चाची श्रीमती ललिता देवी  (1936-2022)
पत्नी स्व• श्री कृष्ण कुमार जी (वकील साहब ), गोपालगंज (बिहार) की तारीफ तभी की जा सकती है जब हाथ में सोने की कलम और दवात में शहद हो। वैसे तो  दुनिया में लोग आते ही हैं जाने के लिए परंतु पीठ पीछे क्या-क्या कहने और सुनने को मिलता है- यह तथ्य मायने रखता है। 
"आवत ही हर्षत नहीं,
 नैनन नहीं स्नेह।
तुलसी वहां न जाईए,     कंचन वरषे मेह।"
हमारी चाची पर यह दोहा सटीक बैठता है।

   "सर्वे भवन्तु सुखिन:" की कामना करनेवाली वह हनुमान भक्त महिला शीलता और शालीनता की बोलती हुई मूर्ति थी°। "LABOUR IS KEY TO SUCCESS" के सिद्धांत को माननेवाली हमारी चाची 
परोपकारी और मृदुभाषी थी°। तुलसी,  दिनकर, प्रेमचंद, मीना कुमारी, निरुपा राय, अमिताभ बच्चन, माला सिन्हा, शारदा सिन्हा, इन्दिरा गांधी, 
सचिन तेंदुलकर आदि उनके मनपसंद चरित्र हैं ।

     गौरतलब है कि बड़े घर की क्रमशः
 बेटी
(अलंकार, पटना) 
और 
बहू 
(आभूषण भवन, गोपालगंज) 
होने के बावजूद सामाजिकता से परिपूर्ण परंतु अहंकार से शून्य थी°। 
धैर्य, अनुशासन और मिलनसार-प्रवृत्ति  उनके आभूषण थे। बड़ो° को सम्मान और छोटो° को स्नेह देनेवाली सदाबहार चाची  घर- बाहर सर्वत्र आस्था और सम्मान से विभूषित  थी`। वह जहाँ भी बैठती थीं, वहां का वातावरण स्वच्छ और खुशनुमा हो जाता था।  होली - दिवाली पर उनसे मिठाई और पैसा पानेवाले अनेक बच्चों में लेखक भी एक था। उनके द्वारा बनाए गए अनेक पकवानों में आलू का मालपुआ प्रबुद्ध वर्ग, व्यापारी वर्ग, मेहमानों आदि
द्वारा पसंद किया जाता था। सास-ससुर, ननद-ननदोई, देवर-देवरानी के 
साथ - साथ घर और बाहर के बच्चों के साथ उनका सदव्यवहार सराहनीय और अनुकरणीय रहा है। मैं उनके घर का अवैतनिक टीचर भी था।
हम-सब बाहरी चुन्नू-मुन्नू, उर्मिला-उषा, नन्हू आदि बच्चों के लिए भी वह मुहल्ले की प्रिय चाची थीं।
     "कोई हमको याद करेगा क्यों ..." के जवाब में बाल- मंडली का रोना है कि छठ पूजा के निमित्त घाट पर बैंड-बाजे के साथ आते-जाते वक्त अब पैसा 
लुटायेगा कौन और ठेकुआ बाँटेगा कौन? प्यार के दो मीठे बोल और हिम्मत के दो शब्द कहाँ मिलेंगे? गरीब मेधावी बच्चों को कौपी, कलम, किताब से मदद करेगा कौन?  किसी के दु:ख में अब सबसे पहले  हाजिर- नाजीर होकर तन-मन-धन से सेवा करेगा कौन?
    मुझे सदमा इस बात से लगा है कि एक तारा न जाने कहाँ छिप गया... चाची से अब बात नहीं हो पायेगी और गोपालगंज जाने पर उस जीवित महादेवी के चरणों को स्पर्श करने का सौभाग्य नहीं मिल पायेगा।
    इस प्रकार यह महसूस किया जा सकता है कि अपने स्वभाविक छोटे-छोटे गुणों के चलते कोई व्यक्ति साधारण (Ordinary)
 से असाधारण (Extra-Ordinary) 
कैसे प्रतीत होता है। सोचना होगा कि 
 फूल से बगीचा शोभता है या बगीचे से फूल शोभता है...? 
    
   -:  डॉ० मनोरंजन शर्मा :-
       577 सेक्टर 19-बी
       संस्कृति अपार्टमेन्ट 
       द्वारका,
      नई  दिल्ली -110075
      9868203203

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