हरिद्वार से माॅ श्री मनसा देवीं दरबार आप सभी के लिए

Sunny Verma Haridwar
 News 879 1204 683 


हरिद्वार में शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं के मुख शिखर पर स्थित मां मनसा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मनसा का शाब्दिक अर्थ है “इच्छा पूर्ण करने वाली देवी” है। पूरे वर्ष देवी के दर्शन को मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। नवरात्रों में मंदिर की रौनक देखते ही बनती है। परिसर में मौजूद स्नोही वृक्ष पर डोरी बांधने की भी परंपरा चली आ रही है।जो भी व्यक्ति माता के मंदिर में आता है वह अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर परिसर में स्थित पेड़ की शाखाओं में धागा बांधते हैं। एक बार जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो लोग पेड़ से धागा खोलने के लिए दोबारा इस मंदिर में आते हैं।मनसा देवी मंदिर का निर्माण राजा गोला सिंह ने सन 1811 से 1815 के बीच किया था। यह मंदिर उन चार स्थानों में से एक है, जहां समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत की कुछ बूंदें गलती से यहां पर गिर गईं थीं। बाद में इस स्थान पर माता के मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर में मां की दो मूर्तियां स्थापित की गयी हैं। एक प्रतिमा में उनके तीन मुख और पांच भुजाएं हैं। दूसरे में आठ भुजाएं हैं। मां कमल और सर्प पर विराजित हैं।मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी आता है। इसमें मनसा देवी को दसवीं देवी माना गया है। मान्यता है कि एक बार जब महिसासुर नामक राक्षस ने देवताओं को पराजित कर दिया। इसके बाद देवताओं ने देवी का स्मरण किया।देवी ने प्रकट होकर महिषासुर नामक राक्षस का वध कर दिया। इस पर देवताओं ने देवी की पूजा अर्चना की और देवी से कहा कि हे देवी जिस प्रकाश आपने हमारी मनसा को पूरा किया इसी प्रकार कलियुग में भी भक्तों की मनसा को पूरा कर उनकी विपत्ति को दूर करें। कहा जाता है कि इस पर देवी ने हरिद्वार के शिवालिक मालाओं के मुख्य शिखर के पास ही विश्राम किया गया। इसी कारण से यहां मनसा देवी मंदिर की स्थापना हुई। मान्यता है कि इसी जगह पर मनसा देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित हुई। कालांतर में यहां मंदिर बनाया गया और मंदिर में आज भी मां मनसा देवी की मूर्ति विराजमान है।देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में पुराणों में मान्‍यता प्राप्‍त है। आपको बताते चलें कि अलग-अलग पुराणों में मां मनसा देवी का वर्णन अलग-अलग प्रकार से किया गया है पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, मां मनसा की शादी जगत्‍कारू से हुई थी और उनके पुत्र का नाम आस्तिक था। मनसा देवी को नागों के राजा वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है।पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्‍म कश्‍यप ऋत्रि के मस्तिष्‍क से हुआ था और मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा। वहीं विष्‍णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रचलित हुई। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी। मां मनसा देवी को जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी के नाम से भी जाना जाता है।

No comments:

Post a Comment

Featured Post

मुंबई मे पुलिसकर्मियों की कविताओं तरल का लोकार्पण,

*पुलिसकर्मियों की कविताओं के संकलन 'चट्टानों के बीच तरल' का मुंबई में लोकापर्ण* *अभिनेता रज़ा मुराद, अखिलेन्द्र मिश्रा व राजेंद्र गुप...